28-03-2002   ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन

इस वर्ष को निर्माण, निर्मल वर्ष और व्यर्थ से मुक्त होने का मुक्ति वर्ष मनाओ

आज बापदादा अपने चारों ओर के बच्चों के मस्तक में चमकती हुई तीन लकीरें देख रहे हैं। एक लकीर है प्रभु पालना की, दूसरी लकीर है श्रेष्ठ पढ़ाई की और तीसरी लकीर है श्रेष्ठ मत की। तीनों ही लकीर चमक रही हैं। यह तीनों लकीर सर्व के भाग्य की लकीरे हैं। आप सभी भी अपनी तीनों लकीरें देख रहे हो ना! प्रभु पालना का भाग्य सिवाए आप ब्राह्मण आत्माओं के और किसी को भी प्राप्त नहीं होता है। परमात्म पालना जिस पालना से कितने श्रेष्ठ पूज्यनीय बन जाते हो। कभी स्वप्न में भी ऐसा सोचा था कि मुझ आत्मा को परमात्म पढ़ाई का अधिकार प्राप्त होना है। लेकिन अभी साकार में अनुभव कर रहे हो। स्वयं सतगुरू अमृतवेले से रात तक हर कर्म की श्रेष्ठ मत दे कर्म बन्धन के परिवर्तन में, कर्म सम्बन्ध में आने की श्रीमत देने के निमित्त बनायेंगे - यह भी स्वप्न में नहीं था। लेकिन अभी अनुभव से कहते हो हमारा हर कर्म श्रीमत पर चल रहा है। ऐसा अनुभव है? ऐसा श्रेष्ठ भाग्य हर बच्चों का बापदादा भी देख-देख हर्षित होते हैं। वाह मेरे श्रेष्ठ भाग्यवान वाह! बच्चे कहते वाह बाबा वाह! और बाप कहते वाह बच्चे वाह!

आज अमृतवेले से बच्चों के दो संकल्पों से याद बापदादा के पास पहुँची। एक तो कई बच्चों को अपना एकाउन्ट देने की याद थी। दूसरी - बाप के संग के रंग की होली याद थी। तो सभी होली मनाने आये हो ना! ब्राह्मणों की भाषा में मनाना अर्थात् बनना। होली मनाते हैं अर्थात् होली बनते हैं। बापदादा देख रहे थे ब्राह्मण बच्चों का होलीएस्ट बनना कितना सर्व से न्यारा और प्यारा है। वैसे द्वापर के आदि की महान आत्मायें और समय प्रति समय आये हुए धर्म पितायें भी पवित्र, होली बने हैं। लेकिन आपकी पवित्रता सबसे श्रेष्ठ भी है, न्यारी भी है। कोई भी सारे कल्प में चाहे महात्मा है, चाहे धर्म आत्मा है, धर्म पिता है लेकिन आप की आत्मा भी पवित्र, शरीर भी पवित्र, प्रकृति भी सतोप्रधान पवित्र, ऐसा होलीएस्ट कोई न बना है, न बन सकता है। अपना भविष्य स्वरूप सामने लाओ। सबके सामने अपना भविष्य रूप आया? या पता ही नहीं है कि बनूंगा या नहीं बनूंगा! क्या बनूंगा! कुछ भी बनेंगे लेकिन होंगे तो पवित्र ना! शरीर भी पवित्र, आत्मा भी पवित्र और प्रकृति भी पवित्र पावन, सुखदाई.... निश्चय की कलम से अपना भविष्य चित्र सामने ला सकते हैं। निश्चय है ना! टीचर्स को निश्चय है? अच्छा एक सेकण्ड में अपना भविष्य चित्र सामने ला सकते हो? चलो कृष्ण नहीं बनेंगे, लेकिन साथी तो बनेंगे ना! कितना प्यारा लगता है। आार्टिस्ट बनना आता है या नहीं आता है? बस सामने देखो। अभी साधारण हूँ, कल (ड्रामा का कल, यह कल नहीं जो कल आयेगा) तो कल यह पवित्र शरीरधारी बनना ही है। पाण्डव क्या समझते हो? पक्का है ना, शक्य तो नहीं है - पता नहीं बनेंगे या नहीं बनेंगे? शक्य है? नहीं है ना! पक्का है। जब राजयोगी हैं तो राज्य अधिकारी बनना ही है। बापदादा कई बार याद दिलाते हैं कि बाप आपके लिए सौगात लाये हैं तो सौगात क्या लाये हैं? सुनहरी दुनिया, सतोप्रधान दुनिया की सौगात लाये हैं। तो निश्चय है, निश्चय की निशानी है रूहानी नशा। जितना अपने राज्य के समीप आ रहे हो, घर के भी समीप आ रहे हो और अपने राज्य के भी समीप आ रहे हो, तो बार-बार अपने स्वीट होम और अपने स्वीट राज्य की स्मृति स्पष्ट आनी ही चाहिए। यह समीप आने की निशानी है। अपना घर, अपना राज्य ऐसा ही स्पष्ट स्मृति में आये, तीसरे नेत्र द्वारा स्पष्ट दिखाई दे। अनुभव हो आज यह, कल यह। कितने बार पार्ट पूरा कर अपने घर और अपने राज्य में गये हो, याद आता है ना! और अब फिर से जाना है। डबल फारेनर्स स्पष्ट याद आता है कि खींचना पड़ता है, पता नहीं क्या बनेगा, कैसा होगा! खींचना पड़ता है या स्पष्ट है? याद है? स्पष्ट है? पीछे वालों को याद है? गैलरी में बैठने वालों को याद है? (आज की सभा 16-17 हज़ार की है) बापदादा देख रहे हैं, बाहर भी बैठे हैं और विश्व के कोने-कोने में भी बैठे हैं। तो होली मना ली ना? हो ही होली, तो होली क्या मनायेंगे! यह तो संगमयुग के सुहेज हैं।

तो बापदादा आज सबका एकाउन्ट देखेंगे ना! भूला नहीं है। सबने अपना एकाउन्ट रखा, जिन्होंने एक्यूरेट अपना एकाउन्ट रखा है, नियम प्रमाण, काम चलाऊ नहीं, यथार्थ रूप से जैसा भी है लेकिन एकाउन्ट अपना पूरा रखा है, सच्चा-सच्चा एकाउन्ट, चलाऊ नहीं, वह बड़ा हाथ उठाओ। जिन्होंने रखा है, लिखा है नहीं, रखा है। थोड़ों ने रखा है। अच्छा पीछे वाले जिन्होंने रखा है, खड़े हो जाओ। अच्छा। डबल फारेनर्स जिन्होंने रखा है वह उठो। अच्छा मुबारक हो। अच्छा - जिन्होंने नहीं रखा है उन्हों से हाथ नहीं उठवाते हैं। उठाना अच्छा नहीं लगेगा ना। लेकिन जिन्होंने सच्चा-सच्चा एकाउन्ट रखा है, बापदादा के पास तो स्पष्ट हो ही जाता है। कइयों ने थोड़ा हिसाब से नहीं, जैसे एवरेज निकाला जाता है ना, ऐसे भी रखा है। एक्यूरेट बहुत थोड़ों ने लिखा है या रखा है। फिर भी बाप के डायरेक्शन को माना इसलिए बापदादा ने दो प्रकार की एक्स्ट्रा मार्क्स उन्हों की बढ़ाई, क्योंकि श्रीमत पर चलना यह भी एक सब्जेक्ट है। तो श्रीमत पर चलने की सब्जेक्ट में पास हुए इसलिए फर्स्ट नम्बर वालों को बापदादा ने अपने तरफ से 25 मार्क्स बढ़ाई, जो पहला नम्बर हैं और जो दूसरा नम्बर हैं उसको 15 मार्क्स बढ़ाई। यह एक्स्ट्रा लिफ्ट बापदादा ने अपने तरफ से दी। तो फाइनल पेपर में आपकी यह मार्क्स जो हैं वह जमा होंगी। पास विद आनर होने में मदद मिलेगी। लेकिन जिन्होंने नहीं रखा है, कोई भी कारण है, है तो अलबेलापन और तो कुछ नहीं है लेकिन फिर भी कोई भी कारण से अगर नहीं रखा है तो बापदादा कहते हैं कि फिर भी एक मास अपना एकाउन्ट अभी से रखो और अगर अभी भी एक मास एक्यूरेट, नम्बरवन वाला एकाउन्ट रखेंगे, तो बापदादा उसकी मार्क्स कट नहीं करेंगे, जो श्रीमत प्रमाण नहीं कर सके हैं। समझा। कट नहीं करेंगे लेकिन करना ज़रूरी है। श्रीमत न मानने से मार्क्स तो कट होती हैं ना! अन्त में जब आप अपना पोतामेल ड्रामा अनुसार दिल है के टी.वी. में देखेंगे और टी.वी. नहीं, अपने ही दिल की टी.वी. में बापदादा दिखायेंगे, तो उसमें इस श्रीमत की मार्क्स कट नहीं करेंगे। फिर भी बापदादा का प्यार है। समझते हैं कि बहुत जन्म के अलबेलेपन के संस्कार पक्के हैं ना, तो हो जाता है। लेकिन अभी अलबेले नहीं बनना, नहीं तो फिर पीछे बतायेंगे क्या होगा, अभी नहीं बताते हैं क्योंकि बापदादा ने सभी की वर्तमान समय की रिज़ल्ट देखी। चाहे डबल फारेनर्स, चाहे भारतवासी, सभी बच्चों की रिज़ल्ट में देखा कि वर्तमान समय अलबेलेपन के बहुत नये-नये प्रकार बच्चों में हैं। अनेक प्रकार का अलबेलापन है। मन ही मन में सोच लेते हैं, सब चलता है..। आजकल का सब बातों में यह विशेष स्लोगन है - ‘‘सब चलता है’’ - यह अलबेलापन है। साथ में थोड़ा-थोड़ा भिन्न-भिन्न प्रकार का पुरूषार्थ वा स्व-परिवर्तन में अलबेलेपन के साथ कुछ परसेन्ट में आलस्य भी है। हो जायेगा, कर ही लेंगे... बापदादा ने नये-नये प्रकार की अलबेलेपन की बातें देखी हैं। इसलिए अपना सच्चा, सच्ची दिल से अलबेले रूप से नहीं, एकाउन्ट ज़रूर रखो।

आज इस सीजन का लास्ट टर्न है ना! तो बापदादा रिज़ल्ट सुना रहे हैं। सुनाये ना! कि नहीं सिर्फ प्यार करें? यह भी प्यार है। हर एक से बापदादा का इतना प्यार है कि सभी बच्चे ब्रह्मा बाप के साथ-साथ अपने घर में चलें। पीछे-पीछे नहीं आवें, साथी बनके चलें। तो समान तो बनना पड़े ना! बिना समानता के साथी बनके नहीं चल सकेंगे और फिर अपने राज्य का पहला जन्म, पहला जन्म तो पहला ही होगा ना! अगर दूसरे-तीसरे जन्म में आ भी गये, अच्छा राजा भी बन गये, लेकिन कहेंगे तो दूसरा-तीसरा ना! साथ चलें और ब्रह्मा बाप के साथ पहले जन्म के अधिकारी बनें - यह है नम्बरवन पास विद आनर वाले। तो पास-विद्-आनर बनना है या पास मार्क्स वाले भी ठीक हैं? कभी भी यह नहीं सोचना कि जो हम कर रहे हैं, जो हो रहा है वह बापदादा नहीं देखते हैं। इसमें कभी अलबेले नहीं होना। अगर कोई भी बच्चा अपने दिल का चार्ट पूछे तो बापदादा बता सकते हैं लेकिन अभी बताना नहीं है। बापदादा हर एक महारथी, घोड़ेसवार... सबका चार्ट देख रहे हैं। कई बार तो बापदादा को बहुत तरस आता है, हैं कौन और करते क्या हैं? लेकिन जैसे ब्रह्मा बाप कहते थे ना - याद है क्या कहते थे? गुड़ जाने गुड़ की गोथरी जाने। शिव बाबा जाने और ब्रह्मा बाबा जाने क्योंकि बापदादा को तरस बहुत पड़ता है लेकिन ऐसे बच्चे बापदादा के रहम के संकल्प को टच नहीं कर सकते, कैच नहीं कर सकते। इसीलिए बापदादा ने कहा - भिन्न-भिन्न प्रकार का रॉयल अलबेलापन बाप देखते रहते हैं। आज बापदादा कह ही देते हैं कि तरस बहुत पड़ता है। कई बच्चे ऐसे समझते हैं कि सतयुग में तो पता ही नहीं पड़ेगा कौन क्या था, अभी तो मौज मना लो। अभी जो कुछ करना है कर लो। कोई रोकने वाला नहीं, कोई देखने वाला नहीं। लेकिन यह गलत है। सिर्फ बापदादा नाम नहीं सुनाते, नाम सुनायें तो कल ठीक हो जाएं।

आज धुरिया मना रहे हैं ना। धुरिये में एक-दो को जो भी होता है स्पष्ट दे देते हैं। तो समझा क्या करना है, पाण्डव समझा कि नहीं समझा! चल जायेगा? चलेगा नहीं क्योंकि बापदादा के पास हर एक की हर दिन की रिपोर्ट आती है। बाप-दादा आपस में भी रूहरूहान करते हैं। तो बापदादा सभी बच्चों को फिर से इशारा दे रहे हैं कि समय सब प्रकार से अति में जा रहा है। माया भी अपना अति का पार्ट बजा रही है, प्रकृति भी अपना अति का पार्ट बजा रही है। ऐसे समय पर ब्राह्मण बच्चों का अपने तरफ अटेन्शन भी अति अर्थात् मन-वचन-कर्म में अति में चाहिए। साधारण पुरूषार्थ नहीं। बापदादा ने इशारा दिया भी है कि 66 वर्ष में अभी तक 6 लाख तैयार किये हैं। अभी 9 लाख भी नहीं हुए हैं। तो विश्व कल्याणी आत्मायें विश्व की सर्व आत्माओं का कल्याण कब करेंगे? और 66 वर्ष चाहिए क्या? 66 वर्ष और नहीं चाहिए? डबल फारेनर्स को चाहिए? नहीं चाहिए? तो क्या करेंगे? चलो आधा, 33 वर्ष चाहिए? नहीं चाहिए। 33 वर्ष भी नहीं चाहिए तो क्या करेंगे? वैसे बापदादा ने देखा है कि सेवा से लगन अच्छी है। सेवा के लिए एवररेडी हैं, चांस मिले तो प्यार से सेवा के लिए एवररेडी हैं। लेकिन अभी सेवा में एडीशन करो - वाणी के साथ-साथ मनसा, अपनी आत्मा को विशेष कोई-न-कोई प्राप्ति के स्वरूप में स्थित कर वाणी से सेवा करो। मानो भाषण कर रहे हो तो वाणी से तो भाषण अच्छा करते ही हो लेकिन उस समय अपने आत्मिक स्थिति में विशेष चाहे शक्ति की, चाहे शान्ति की, चाहे परमात्म-प्यार की, कोई न कोई विशेष अनुभूति की स्थिति में स्थित कर मनसा द्वारा आत्मिक-स्थिति का प्रभाव वायुमण्डल में फैलाओ और वाणी से साथ-साथ सन्देश दो। वाणी द्वारा सन्देश दो, मनसा आत्मिक स्थिति द्वारा अनुभूति कराओ। भाषण के समय आपके बोल आपके मस्तक से, नयनों से, सूरत से उस अनुभूति की सीरत दिखाई दे कि आज भाषण तो सुना लेकिन परमात्म प्यार की बहुत अच्छी अनुभूति हो रही थी। जैसे भाषण की रिज़ल्ट में कहते हैं बहुत अच्छा बोला, बहुत अच्छा, बहुत अच्छी बातें सुनाई, ऐसे ही आपके आत्म-स्वरूप की अनुभूति का भी वर्णन करें। मनुष्य आत्माओं को वायब्रेशन पहुँचे, वायुमण्डल बने। जब साइंस के साधन ठण्डा वातावरण कर सकते हैं, सबको महसूस होता है बहुत ठण्डाई अच्छी आ रही है। गर्म वायुमण्डल अनुभव करा सकते हैं। साइंस सर्दी में गर्मी का अनुभव करा सकती है, गर्मी में सर्दी का अनुभव करा सकती, तो आपकी साइन्स क्या प्रेम स्वरूप, सुख स्वरूप, शान्त स्वरूप वायुमण्डल अनुभव नहीं करा सकती! यह रीसर्च करो। सिर्फ अच्छा-अच्छा किया लेकिन अच्छे बन जायें, तब समाप्ति के समय को समाप्त कर अपना राज्य लायेंगे। क्यों, आपको अपना राज्य याद नहीं आता? संगमयुग श्रेष्ठ है वह ठीक है, हीरे तुल्य है। लेकिन हे रहमदिल, विश्व कल्याणी बच्चे, अपने दु:खी अशान्त भाई बहनों पर रहम नहीं आता? उमंग नहीं आता, दु:खमय संसार को सुखमय बना दें, यह उमंग नहीं आता? दु:ख देखने चाहते, दूसरों का दु:ख देखकर भी रहम नहीं आता? आपके भाई हैं, आपकी बहिनें हैं तो दु:ख देखना अच्छा लगता है? अपना दयालु, कृपालु स्वरूप इमर्ज करो। सिर्फ सेवा में नहीं लग जाओ, यह प्रोग्राम किया, यह प्रोग्राम किया... चलो वर्ष पूरा हुआ। अभी मर्सीफुल बनो। चाहे दृष्टि से, चाहे अनुभूति से, चाहे आत्मिक स्थिति के प्रभाव से, मर्सीफुल बनो। रहमदिल बनो। 66 वर्ष समाप्त हो चुके  हैं। कम नहीं हैं 66 वर्ष। ब्रह्मा बाप को अव्यक्त होते भी 33 वर्ष हो गये हैं। ब्रह्मा बाप कब-कब कहते भी हैं, कब बच्चे आयेंगे, दरवाजा खोलने के लिए। तो घर का दरवाजा साथ में खोलेंगे या पीछे-पीछे आयेंगे? इन्तजार कर रहा है। तो सेवा में एडीशन करो। इससे बापदादा गैरन्टी दे रहे हैं कि थोड़े समय में अगर इस विधि से सेवा की तो आपके पास क्वालिटी की वर्षा हो जायेगी। वारिस क्वालिटी की बारिश पड़ेगी। इतनी मेहनत करने की ज़रूरत ही नहीं पड़ेगी। कहना ही नहीं पड़ेगा - अभी यह कार्य होना है, इसमें सहयोगी बनो, नहीं। सहयोग की स्वयं आफर करने वाले होंगे। लेकिन साधारण पुरूषार्थ, साधारण विधि की सेवा को परिवर्तन करो। छिम-छिम होनी चाहिए। होनी तो है ही। सिर्फ अनुभूति कराने की विधि सोचो, सिर्फ भाषण और कोर्स कराने की नहीं, वह बहुत करा लिए। वर्गाकरण के प्रोग्राम भी बहुत कर लिये। जो आये उस पर छाप लगे, 9 लाख की छाप लग जाए। समझा। क्या करना है? कहते थे सर्विस का प्लैन सुनाना, कहा था ना? अभी कोई छिम-छिम करके दिखाओ। अभी धीमी चाल है। जैसे लक्ष्मी के लिए कहते हैं ना, दोनों हाथों से सम्पत्ति की छिम-छिम हो रही है, तो आप अभी श्रेष्ठ ब्राह्मण बन अनुभूतियों की छिम-छिम करो। लेकिन अनुभूति वह करा सकेंगे जो और व्यर्थ चिंतन, व्यर्थ दर्शन और व्यर्थ समय गंवाने वाले नहीं होंगे। आजकल थोड़ा-थोड़ा, बापदादा ने थोड़ा देखा है। वह भी सुनायें क्या? अच्छा आज सब सुना देते हैं। होली है ना! तो होली में बुरा नहीं मानते हैं। अच्छा।

बापदादा ने एक बात और भी देखी है, सुनाना अच्छा नहीं लगता। कभीकभी कोई-कोई बच्चे, अच्छे-अच्छे भी दूसरों की बातों में बहुत पड़ते हैं। दूसरों की बातें देखना, दूसरों की बातें वर्णन करना... और देखते भी व्यर्थ बातें हैं। विशेषता एक दो की वर्णन करना, वह कम है। हर एक की वि्शेषता देखना, विशेषता वर्णन करना, उनकी विशेषता द्वारा उनको उमंग उत्साह दिलाना, यह कम है। लेकिन व्यर्थ बातें जिन बातों को, बापदादा कहते हैं छोड़ दो, अपनी तो छोड़ने की कोशिश करते, लेकिन दूसरे की देखने की भी आदत है। उसमें टाइम बहुत जाता है। बापदादा एक विशेष श्रीमत दे रहे हैं - है कामन बात लेकिन टाइम बहुत वेस्ट जाता है। बोल में निर्माण बनो। बोल में निर्माणता कम नहीं होनी चाहिए। भले साधारण शब्द बोलते हैं, समझते हैं, इसमें तो बोलना ही पड़ेगा ना! लेकिन निर्माणता के बजाए अगर कोई अथॉरिटी से, निर्माण बोल नहीं बोलते तो थोड़ा कार्य का, सीट का, 5 परसेन्ट अभिमान दिखाई देता है। निर्माणता ब्राह्मणों के जीवन का विशेष शृंगार है। निर्माणता मन में, वाणी में, बोल में, सम्बन्ध-सम्पर्क में....हो। ऐसे नहीं तीन बातों में तो मैं निर्माण हूँ, एक में कम हूँ तो क्या हुआ! लेकिन वह एक कमी पास विद आनर होने नहीं देगी। निर्माणता ही महानता है। झुकना नहीं है, झुकाना है। कई बच्चे हंसी में ऐसे कह देते हैं क्या मुझे ही झुकना है, यह भी तो झुके। लेकिन यह झुकना नहीं है वास्तव में परमात्मा को भी अपने ऊपर झुकाना है, आत्मा की तो बात ही छोड़ो। निर्माणता निरंहकारी स्वत: ही बना देती है। निरंहकारी बनने का पुरूषार्थ करना नहीं पड़ता है। निर्माणता हर एक के मन में, आपके लिए प्यार का स्थान बना देती है। निर्माणता हर एक के मन से आपके प्रति दुआयें निकालेगी। बहुत दुआयें मिलेंगी। दुआयें, पुरूषार्थ में लिफ्ट से भी राकेट बन जायेंगी। निर्माणता ऐसी चीज़ है। कैसा भी कोई होगा, चाहे बिजी हो, चाहे कठोर दिल वाला हो, चाहे क्रोधी हो, लेकिन निर्माणता आपको सर्व द्वारा सहयोग दिलाने के निमित्त बन जायेगी। निर्माण, हर एक के संस्कार से स्वयं को चला सकता है। रीयल गोल्ड होने के कारण स्वयं को मोल्ड करने की विशेषता होती है। तो बापदादा ने देखा है कि बोल-चाल में भी, सम्बन्ध-सम्पर्क में भी, सेवा में भी एक दो के साथ निर्माण स्वभाव विजय प्राप्त करा देता है। इसलिए इस वर्ष में विशेष बापदादा इस वर्ष को निर्माण, निर्मल वर्ष का नाम दे रहे हैं। वर्ष मनायेंगे ना। मनाना माना बनना। सिर्फ कहना नहीं, हाँ यह वर्ष है। बनना है। बनना है ना? बस ऐसे बोलो जो सब कहें और भी मोती  हमको सुनाओ, मोती दो। ऐसे नहीं कहें - नहीं, नहीं यह तो सुनो नहीं, जाओ। ऐसे नहीं। हीरे-मोती मुख से निकलें। अभिमान से बोलने से किसको दु:ख क्यों देते हो! दु:ख के खाते में जमा तो होगा ना। आप समझते हो क्या हुआ बोल दिया, ऐसे ही तो है। लेकिन दु:ख के खाते में जमा होता है। समझा। इसीलिए एकाउन्ट रखना। ऐसे नहीं अभी तो एकाउन्ट दे दिया? रखने से फायदा है।

बापदादा ने देखा कइयों ने पुरूषार्थ अच्छा किया है। अटेन्शन दिया है। तो क्या याद रखेंगे? निर्माण। तब निर्माण का कर्त्तव्य फटाफट होगा। निर्माण बनो, निर्माण करो। फिर आपेही बोलेंगे, बाबा अभी तो छिम-छिम हो गई है। होनी ही है। सारे विश्व की आत्मायें अहो प्रभु कहके भी आपके आगे झुकनी हैं। तो सुना वर्ष की सेवा का सुनाया ना! अभी देखेंगे कौन-सा सेन्टर, कौन-सा ज़ोन, ज़ोन में भी कौन-सा सेन्टर इस विधि से वारिस निकालते हैं। अभी कोई वारिसों की छिम-छिम करो। वह होगी अनुभूति कराने से। सबसे बड़े ते बड़ी अथॉरिटी अनुभव है। अनुभवी को कोई बदल नहीं सकता। अच्छा। डबल फारेनर्स को एक सेकण्ड में कोई भी व्यर्थ बात, कोई भी निगेटिव बात, कोई भी बीती बात, उसको मन से बिन्दी लगाना आता है?

डबल फारेनर्स जो समझते हैं कि कैसी भी बीती हुई बात, अच्छी बात तो भूलनी है ही नहीं, भूलनी तो व्यर्थ बातें ही होती हैं। तो कोई भी बात जिसको भूलने चाहते हैं, उसको सेकेण्ड में बिन्दी लगा सकते हैं? जो फारेनर्स लगा सकते हैं, वह सीधा, लम्बा हाथ उठाओ। मुबारक हो। अच्छा, जो समझते हैं कि एक सेकण्ड में नहीं एक घण्टा तो लगेगा ही? सेकण्ड तो बहुत थोड़ा है ना! एक घण्टे के बाद बिन्दी लग सकती है, वह हाथ उठाओ। जो घण्टे में बिन्दी लगा सकते हैं, वह हाथ उठाओ। देखा, फारेनर्स तो बहुत अच्छे हैं। भारतवासी भी जो समझते हैं एक घण्टे में नहीं आधे दिन में बिन्दी लग सकती है, वह हाथ उठाओ। (कोई ने हाथ नहीं उठाया) हैं तो सही, बापदादा को पता है। बापदादा तो देखता रहता है, हाथ नहीं उठाते, लेकिन लगता है। लेकिन समझो आधा दिन लगे, एक घण्टा लगे और आपको एडवांस पार्टी का निमन्त्रण आ जाए तो? तो क्या रिज़ल्ट होगी? अन्त मते सो गति क्या होगी? समझदार तो हो ना? इसलिए अपनी मनसा को बिज़ी रखेंगे ना, मनसा सेवा का टाइमटेबुल बनायेंगे अपना तो बिन्दी लगाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। बस, होंगे ही बिन्दी रूप। इसलिए अभी अपने मन का टाइमटेबुल फिक्स करो। मन को सदा बिज़ी रखो, खाली नहीं रखो। फिर मेहनत करनी पड़ती है। ऊँचे-ते-ऊँचे भगवन के बच्चे हो, तो आपका तो एक-एक सेकण्ड का टाइमटेबुल फिक्स होना चाहिए। क्यों नहीं बिन्दी लगती, उसका कारण क्या? ब्रेक पावरफुल नहीं है। शक्तियों का स्टॉक जमा नहीं है इसीलिए सेकण्ड में स्टॉप नहीं कर सकते। कई बच्चे कोशिश बहुत करते हैं, जब बापदादा देखते हैं मेहनत बहुत कर रहे हैं, यह नहीं हो, यह नहीं हो... कहते हैं नहीं हो लेकिन होता रहता है। बापदादा को बच्चों की मेहनत अच्छी नहीं लगती। कारण यह है, जैसे देखो रावण को मारते भी हैं, लेकिन सिर्फ मारने से छोड़ नहीं देते हैं, जलाते हैं और जलाके फिर हड्डियाँ जो हैं, वह आजकल तो नदी में डाल देते हैं। कोई भी मनुष्य मरता है तो हड्डियाँ भी नदी में डाल देते हैं तभी समाप्ति होती है। तो आप क्या करते हो? ज्ञान की प्वाइंटस से, धारणा की प्वाइंट्स से उस बात रूपी रावण को मार तो देते हो लेकिन योग अग्नि में स्वाहा नहीं करते हो। और फिर जो कुछ बातों की हड्डियाँ बच जाती हैं ना - वह ज्ञान सागर बाप के अर्पण कर दो। तीन काम करो - एक काम नहीं करो। आप समझते हो पुरूषार्थ तो किया ना, मुरली भी पढ़ी, 10 बारी मुरली पढ़ी फिर भी आ गई क्योंकि आपने योग अग्नि में जलाया नहीं, स्वाहा नहीं किया। अग्नि के बाद नाम निशान गुम हो जाता है फिर उसको भी बाप सागर में डाल दो, समाप्त। इसलिए इस वर्ष में बापदादा हर बच्चे को व्यर्थ से मुक्त देखने चाहते हैं। मुक्त वर्ष मनाओ। जो भी कमी हो, उस कमी को मुक्ति दो, क्योंकि जब तक मुक्ति नहीं दी है ना, तो मुक्तिधाम में बाप के  साथ नहीं चल सकेंगे। तो मुक्ति देंगे? मुक्ति वर्ष मनायेंगे? जो मनायेगा वह ऐसे हाथ करे। मनायेंगे? एक-दो को देख लिया ना, मनायेंगे ना! अच्छा है। अगर मुक्ति वर्ष मनाया तो बापदादा जौहरातों से जड़ी हुई थालियों में बहुतबहुत मुबारक, ग्रीटिंग्स, बधाइयाँ देंगे। अच्छा है, अपने को भी मुक्त करो। अपने भाई-बहनों को भी दु:ख से दूर करो। बिचारों के मन से यह तो खुशी का आवाज निकले - हमारा बाप आ गया। ठीक है। अच्छा।

बाकी दादियां पूछती हैं - बापदादा का प्रोग्राम क्या होगा? यही क्वेश्चन है ना! तो बापदादा कहते हैं जैसे अब तक प्रोग्राम चल रहा है, उसी विधि से चलना ही है। बाकी कभी आवश्यकता हुई तो दादियों की दिल पूरी करेंगे, लेकिन आवश्यकता हुई तो। दादी समझती है बाप का आना तो बहुत सहज है ना। क्यों नहीं बापदादा आवे। लेकिन रथ को भी तो देखो। 33 वर्ष पार्ट बजाना भी आफरीन है। इतनी बड़ी शक्तियों को धारण करना, छोटी बात नहीं है। दादी क्या करती है बतायें, कोई भी बात होगी कहेगी अभी-अभी जाओ, सन्देश लेके आओ। तो बच्ची कहती है दादी अभी तो दिन है, रात को जायेंगे। नहीं, नहीं, अभी-अभी जाओ। मरना तो पड़ता है ना। शरीर से तो मरना पड़ता है ना। चाहे सन्देश हो, चाहे बापदादा की पधरामनी हो। पधरामनी तो बड़ी बात है लेकिन सन्देश में भी अशरीरी, मीठा मरना है लेकिन मरना तो है ना! इसलिए फिर भी बापदादा का दादियों के लिए बहुतबहुत- बहुत रिगार्ड और प्यार है। प्यार की रस्सी में बांधना अच्छी तरह से आता है। अच्छा।

मीटिंग के भाई-बहनों से जो भी मीटिंग के लिए आये हैं वह उठो। अच्छा। और भी आने वाले होंगे। मीटिंग में इसी विधि से सर्विस के प्लैन बनाना और मुक्त वर्ष मनाने की सहज विधि बताना - एक दो को राय देना। इस वर्ष में सब मुक्त हो जाएं। हो सकता है? एक वर्ष में हो सकता है? बोलो, हो सकता है? हाँ तो बहुत अच्छी कर रहे हैं, दिल खुश कर दिया। ऐसे ही खुश करना। बस हर एक अपने को मुक्त करो, दूसरे को नहीं देखो। अपनी जिम्मेवारी तो ले सकते हो ना। अगर हर एक ने अपनी-अपनी जिम्मेवारी ले ली तो सब हो जायेगा। आपको फालो करने वाले आपेही फालो करेंगे। एक्जैम्पुल तो बनो ना। अच्छा। तो ऐसा प्लैन बनाना। यह कांफरेंस हुई, यह भाषण हुआ, यह नहीं। मन की स्थिति के प्रोग्राम बनाना। अच्छा।

सेवा का टर्न - राजस्थान, इन्दौर का है - सेवाधारी बहुत हैं। ग्रुप भी बड़ा है ना! अच्छा सभी ने अपने पुण्य का खाता जमा किया! दुआयें ली? यह बहुत सहज विधि है, जमा करने में सबसे सहज विधि है, दुआयें दो अर्थात् दुआयें लो। दुआयें देना ही दुआ लेना है। तो आप सबने दुआओं का खाता जमा किया, तो आपके खाते में मार्क्स जमा हो गई हैं। अच्छा है, यह भी एक चांस मिलता है। तो पहले सुनाया था ना - वह होते हैं युनिवर्सिटी के चांसलर, आप हो पुण्य के खाते का चांस लेने वाले चांसलर। तो बहुत अच्छा किया। सभी ने अच्छी सेवा की। सबको सुख दिया। ठीक रहे ना! सेवा ठीक रही? सेवा में कोई तकलीफ तो नहीं हुई? नहीं। बहुत अच्छा।

कल्चरल विंग, सोशल विंग और सिक्यूरिटी विंग की मीटिंग चल रही है

कल्चरल वर्ग - कल्चरल वर्ग वाले सभी कल्चरल करने वाली आत्माओं को ब्राह्मण कल्चर भी सिखाते हो ना! तो कल्चरल और कल्चर दोनों ही सिखाते सभी आत्माओं को बाप के समीप लाते रहो। कल्चरल तो मनोरंजन है, तो सदा मनोरंजन कैसे रहे, वह शिक्षा वा वह विधि भी सिखाके सभी को सदा खुश बनाना। अच्छा है यह भी सर्विस का साधन अच्छा है। लेकिन दोनों साथ-साथ हों। तो सब सेवा में सन्तुष्ट हो ना! सन्तुष्ट हो?

सिक्यूरिटी वाले - मन की सिक्यूरिटी, तन की सिक्यूरिटी और धन की सिक्यूरिटी तीनों ही सिक्यूरिटी आज के जमाने में बहुत आवश्यक हैं। 99 सिक्यूरिटी वालों को पहले आत्माओं को मन से विकारों की सिक्यूरिटी और तन से बुरे कर्म करने की सिक्यूरिटी और धन को सफल करने की सिक्यूरिटी.. तो तीनों ही काम करते हो ना! या सिर्फ सिक्यूरिटी स्थूल तो नहीं करते ना, पहले मन की सिक्यूरिटी, जितनी अपने मन की सिक्यूरिटी होगी, उतनी ही दूसरे को भी मन की सिक्यूरिटी में आगे बढ़ा सकेंगे। अच्छा काम है, बहुत आवश्यक कार्य है। सिक्यूरिटी सबसे आवश्यक है और ऐसे सिक्यूरिटी वाले तो विश्व के लिए बहुत कल्याणकारी आत्मायें हैं। तो बहुत अच्छा कार्य कर रहे हो और सदा आगे बढ़ते रहना, बढ़ाते रहना। अच्छा।

सोशल वर्ग - हर वर्ग का कार्य तो बहुत सुन्दर है। वर्तमान समय में सोशल वर्ग का कार्य भी आवश्यक है। और सोशल वर्कर में विशेषता होती अथक और प्यार से हर कार्य में सोशल वर्क करना। तो आप तो मास्टर सर्वशक्तिवान हैं, इसलिए अथक भी हैं और हर कार्य में हर विधि से सोशल वर्ग द्वारा आत्माओं का कल्याण कर भी रहे हैं और करते भी रहेंगे। ठीक है ना? बहुत अच्छा। अभी हर एक वर्ग जो बापदादा ने विधि सुनाई उसी विधि प्रमाण प्रोग्राम बनाना। ठीक है ना! अच्छा।

चारों ओर के सर्व होलीएस्ट आत्माओं को, सदा निर्माण बन निर्माण करने वाले बापदादा के समीप आत्माओं को, सदा अपने पुरूषार्थ की विधि को फास्ट, तीव्र कर सम्पन्न बनने वाले स्नेही आत्माओं को, सदा अपने बचत का खाता बढ़ाने वाले तीव्र पुरुषार्थी, तीव्र बुद्धि वाले बच्चों को विशाल बुद्धि की मुबारक भी है और होली की भी अर्थात् सेकण्ड में हो ली, बिन्दी लगाने वाले बच्चों को बहुत-बहुत याद-प्यार, कोने-कोने के बच्चों को बापदादा विशेष याद-प्यार दे रहे हैं। आपके पोतामेल भी मिले हैं, याद-प्यार के पत्र भी मिले हैं, कार्ड भी मिले हैं और दिल के संकल्प भी पहुँचे हैं, दिल की रूहरूहान भी पहुँची है, उन सबके रिटर्न में बापदादा पदमगुणा याद- प्यार दे रहे हैं। याद-प्यार के साथ सभी बच्चों को नमस्ते।

दादियों से बापदादा की मुलाकात

अभी भी जितना नजदीक से आप मिलते हो, उतना कौन मिलता है! (निर्मलशान्ता दादी से) अच्छा पार्ट बजा रही हो। प्रकृति को चलाने का ढंग अच्छा है। (बाबा चलाता है) और आप चल रही हो। चलाने वाला चला रहा है। सभी अच्छे चल रहे हैं। शरीर को अच्छा चलाने का ढंग आ गया है। अच्छा है, जो हो रहा है अच्छा है। अच्छा।

ओम् शान्ति।